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वीकेसी फुटस्टेप्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड V/s भारत संघ -CGST नियमों के नियम 89(5) की वैधता बरकरार

Print PDF eBookसुप्रीम कोर्ट : वस्तु एवं सेवाओं को महज रिफंड के लिए आईटीसी के समान नहीं माना जा सकता/ सीजीएसटी अधिनियम की धारा 54 (3) को वैध ठहराया IN THE SUPREME COURT OF INDIA  भारत संघ वीकेसी फुटस्टेप्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड Vs भारत संघ -...

सुप्रीम कोर्ट : वस्तु एवं सेवाओं को महज रिफंड के लिए आईटीसी के समान नहीं माना जा सकता/ सीजीएसटी अधिनियम की धारा 54 (3) को वैध ठहराया

IN THE SUPREME COURT OF INDIA

 भारत संघ

V/s

 वीकेसी फुटस्टेप्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड

Civil Appeal No: – 4810 of 2021

 संक्षिप्त सारांश

सुप्रीम कोर्ट ने जीएसटी पर अहम फैसले में केंद्र सरकार की याचिका स्वीकार करते हुए कहा, CGST Act and Rule  के तहत वस्तु एवं सेवाओं को महज रिफंड के लिए इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) की तरह नहीं माना जा सकता, साथ ही कानून के तहत रिफंड के लिए इसकी सांविधानिक पात्रता नहीं है।

जब न तो संवैधानिक गारंटी है और न ही रिफंड के लिए वैधानिक अधिकार, यह प्रस्तुत करना कि अप्रयुक्त आईटीसी के  रिफंड के मामले में वस्तुओं और सेवाओं को समान रूप से माना जाना चाहिए, स्वीकार नहीं किया जा सकता है, अदालत ने इस आधार पर धारा 54 (3) के खिलाफ चुनौती को खारिज करते हुए कहा यह संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के सिद्धांत का उल्लंघन करती है।

सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात हाईकोर्ट के उस फैसले को अस्वीकार कर दिया जिसमें उसने sub-Rule (5) of Rule 89 of the CGST Rules को अवैध करार दिया था। जस्टिस Dr Dhananjaya Y Chandrachud and MR Shah की पीठ ने फैसले को लिखते हुए मद्रास उच्च न्यायालय के निष्कर्षों से सहमति व्यक्त की, उच्च न्यायालय ने नियम की वैधता को बरकरार रखा था।

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फैसले में कहा गया है, ‘‘जब रिफंड के लिये न कोई संवैधानिक गारंटी है और न ही कानून में इसका अधिकार हो, ऐसे में यह दलील स्वीकार नहीं की जा सकती कि बिना उपयोग वाले आईटीसी की रिफंड के मामले में वस्तुओं और सेवाओं को समान रूप से माना जाना चाहिए।’’ इस संदर्भ में पूर्व के फैसलों का जिक्र करते हुए न्यायालय ने कहा कि कराधान के क्षेत्र में शीर्ष अदालत ने फार्मूले की व्याख्या के लिये तभी हस्तक्षेप किया है, जब उसका विश्लेषण सहीं नहीं जान पड़ता है या अव्यवहारिक है।’’

जस्टिस Dr Dhananjaya Y Chandrachud and MR Shah की पीठ ने कहा, ‘‘हमें ऐसे  मामले में विधायिका के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप से बचना चाहिए। हालांकि, करदाताओं ने जो विसंगितयां बतायी हैं, हम उसको देखते हुए जीएसटी परिषद से फार्मूले पर पुनर्विचार करते हुये इस सबंध में नीतिगत निर्णय लेने का आग्रह करते हैं।’’

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