क्या लोक अदालत के फैसले के खिलाफ अपील की जा सकती है ? (appeal against award of lok adalat)
यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है और जिसको उत्तर नहीं में है, विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 की धारा 21(2) के अंतर्गत लोक अदालत का फैसला जो कि सेटलमेंट का हो या अन्य हो अंतिम माना जाता है, और इसके खिलाफ कहीं भी अपील नहीं की जा सकती, और इस फैसले को सभी पक्षों को मानना होगा व संविधान के अनुच्छेद 226 और 227 के तहत रिट याचिका दायर करने का अवसर भी सीमित है।
Smt. Soni Kumari vs Sri Akhand Pratap Singh के मामले में एक महिला ने लोक अदालत द्वारा तलाक के एक फैसले को Allahabad High Court में चुनौती दी थी। महिला के द्वारा यह कहा गया था कि यह फैसला देते हुए फैमिली कोर्ट एक्ट, 1984 और विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 की प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया।
न्यायमूर्ति अजय लाम्बा और न्यायमूर्ति अनंत कुमार की बेंच ने कहा कि- विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 की धारा 21(2) (sub Section (2) of Section 21 of the Legal Services Authority Act, 1987 के प्रावधानों में स्पष्ट कहा गया है कि किसी भी पक्ष द्वारा लोक अदालत के फैसले के खिलाफ अपील नहीं की जा सकती और फैसले को सभी पक्षों को मानना होगा।
वहीं दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट के द्वारा जालौर सिंह के मामले में व Bharvagi Constructions & Anr. VERSUS Kothakapu Muthyam Reddy & Ors के मामले में आए फैसले में कोर्ट ने इस मामले की पुष्टि की है, कि लोग अदालत के फैसले को अनुच्छेद 226, 227 के अधीन बहुत ही सीमित मामलों में चुनौती दी जा सकती है |
उपयुक्त लेख के आधार पर हम यह कह सकते है, की जहा एक और तो sub Section (2) of Section 21 के प्रावधानों में स्पष्ट कहा गया है, कि किसी भी पक्ष द्वारा लोक अदालत के फैसले के खिलाफ अपील नहीं की जा सकती है, और फैसले को सभी पक्षों को मानना होगा |

वही दूसरी और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर लोक अदालत के फैसले को अनुच्छेद 226, 227 के अधीन बहुत ही सीमित मामलों में चुनौती दी जा सकती है |
तो इस प्रकार निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है, कि sub Section (2) of Section 21 of the Legal Services Authority Act, 1987 में संशोधन करते हुए लोक अदालत के फैसले के खिलाफ अपील किए जाने के निश्चित आधारों का दिया जाना आवश्यक है |
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