तलाक के बाद चाइल्ड कस्टडी किसे सुनिश्चित की जाती है ?
चाइल्ड कस्टडी एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से न्यायालय तय करता है कि माता-पिता के तलाक के बाद बच्चे की कस्टडी किसे दी जाएगी। यह प्रक्रिया बच्चे की जिम्मेदारी को सुनिश्चित करने का एक तरीका है और उसके भविष्य की देखभाल को सुनिश्चित करने का उद्देश्य है।
व्यक्तिगत कानूनों के अनुसार, चाइल्ड कस्टडी के लिए अलग-अलग नियम हो सकते हैं, जो बच्चे की आयु, मानसिक और शारीरिक आवश्यकताओं, और माता-पिता की क्षमता को ध्यान में रखते हैं। इन नियमों का मुख्य उद्देश्य हमेशा बच्चे की भलाइयों की सुनिश्चित करना है।
ज्यादातर मामलों में बच्चे की कस्टडी माँ को ही दी जाती है, क्योंकि सामाजिक परंपराएं और मानवीय भावनाएं अक्सर मातृत्व को बच्चे की परवाह करने के लिए उपयुक्त मानती हैं।
हिन्दू कानून के अनुसार चाइल्ड कस्टडी
हिन्दू कानून के अनुसार, बच्चे की कस्टडी का प्रावधान संरक्षक और प्रतिपाल्य अधिनियम, 1890 (Guardians and Wards Act, 1890) और हिन्दू अल्पसंख्यक और संरक्षकता अधिनियम, 1956 (Hindu Minority and Guardianship Act, 1956) में किया गया है।
-
संरक्षक और प्रतिपाल्य अधिनियम, 1890 (Guardians and Wards Act, 1890): इस अधिनियम के तहत, न्यायालय एक बच्चे की कस्टडी को नियुक्ति कर सकता है। इसका मुख्य उद्देश्य बच्चे की भलाइयों और सुरक्षा की सुनिश्चित करना है।
-
हिन्दू अल्पसंख्यक और संरक्षकता अधिनियम, 1956 (Hindu Minority and Guardianship Act, 1956): इस अधिनियम के तहत, बच्चे की कस्टडी के लिए माता और पिता दोनों को अधिकार होते हैं। यदि बच्चा 5 वर्ष से कम उम्र का है, तो माता को प्राथमिकता दी जाती है। अगर बच्चा इलिजिटमेट है, तो उसकी कस्टडी माँ के पास होती है।
-
आयु से संबंधित विवाद: 18 वर्ष से कम आयु के लड़के या विवाहित लड़की और 5 वर्ष से अधिक की आयु के बच्चे की कस्टडी में पिता को अधिकार हो सकते हैं।
यह सभी नियम बच्चे की हित में और उनके सही विकास की सुनिश्चिति के लिए बनाए गए हैं।
मुस्लिम कानून के अनुसार चाइल्ड कस्टडी
मुस्लिम कानून के अनुसार बच्चे की कस्टडी का अधिकार “हिजानात” कहलाता है। इस तरह की कस्टडी में, बच्चे की जिम्मेदारी और उसकी देखभाल को व्यक्ति को सौंपा जा सकता है, जिसे हिजान (हकदार) कहा जाता है। शरीयत कानून के अनुसार पिता को अपने बच्चों का “नैचुरल गार्डियन” माना जाता है, चाहे वह बच्चा लड़का हो या लड़की। पिता को बच्चे की शिक्षा, पोषण, और अन्य जिम्मेदारियों की सुरक्षा का जिम्मेदारी होता है।
माता के लिए, बेटे की कस्टडी का हकदार 7 वर्ष तक की उम्र तक हो सकता है, जब तक कि बेटा इस उम्र को पूरा नहीं कर लेता है। बेटियों के लिए, उन्हें तब तक की कस्टडी मिल सकती है जब तक कि वे यौवन प्राप्त नहीं कर लेती हैं।
इसमें यह भी शामिल है कि मुस्लिम विधि विचार करती है कि बच्चे का हित सर्वप्रथम हो, और उसकी भलाइयों और सुरक्षा का पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए।
क्रिश्चियन कानून के अनुसार चाइल्ड कस्टडी
“क्रिश्चियन कानून के अनुसार चाइल्ड कस्टडी को लेकर कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं बनाया गया है। भारतीय तलाक अधिनियम, 1869 के अनुसार, सेक्शन 41 के तहत, कोर्ट को क्रिश्चियन बच्चों की कस्टडी लेने का अधिकार है।
यह स्पष्ट है कि न्यायिक प्राधिकृति को क्रिश्चियन बच्चों की कस्टडी, शिक्षा, और रखरखाव के बारे में निर्णय लेने का अधिकार है। न्यायालय इसका निर्णय बच्चे के कल्याण और सर्वोत्तम हित को ध्यान में रखते हुए लेता है और इस प्रक्रिया में माता-पिता के साथ सहयोग कर सकता है।
न्यायालय को यह अधिकार है कि वह बच्चे के हित में और उसके सही विकास की सुनिश्चिति के लिए अपनी विवेकपूर्ण निर्णय करे और दोनों माता-पिता को कस्टडी देने से इनकार कर सकता है, यदि वे बच्चे की समृद्धि के लिए उचित अवसर नहीं प्रदान कर सकते हैं।
कानूनी मामलों में चाइल्ड कस्टडी के संदर्भ में उपयुक्त है। यहां कुछ मुख्य प्रदान हैं:
-
बच्चे की आयु 5 वर्ष से कम है: हिन्दू कानून के अनुसार, 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चे की कस्टडी माँ को दी जाती है। इसमें यह अंतर है कि हिन्दू कानून में माता-पिता को समान अधिकार हैं।
-
तलाक के बाद कस्टडी प्राप्त करने का अधिकार: तलाक होने के बाद पिता को बच्चे की कस्टडी प्राप्त करने का समान अधिकार होता है। यह भी देखा गया है कि न्यायिक प्राधिकृति इस मुद्दे पर सुनिश्चित रूप से निर्णय लेती है।
-
बच्चे की आयु 9 वर्ष से अधिक: यदि बच्चे की आयु 9 वर्ष से अधिक है, तो कोर्ट बच्चे की कस्टडी किसी भी माता-पिता को देने से पहले बच्चे की मर्जी पूछती है कि वह माँ या पापा में से किसके पास जाना चाहता है।
-
बेटी के मामले में कस्टडी: बेटी के मामले में चाइल्ड कस्टडी ज्यादातर माँ को ही मिलती है। इसमें सामाजिक और मानवीय परंपराओं का भी प्रभाव हो सकता है।
ये विवरण बच्चे की हित में सही और संवेदनशील निर्णय लेने के लिए कानूनी प्रक्रिया में व्यापकता और सुधार की जरूरत को दर्शाते हैं।
सुप्रीम कोर्ट जज्मन्ट ऑन चाइल्ड कस्टडी
सेलवाराज बनाम रेवती (2023)
उच्च न्यायालय ने इस मामले में पिता को बच्चे की कस्टडी सौपते हुए, यह विचार प्रकट किया कि “बच्चे के पालन-पोषण के लिए यह हमेशा अच्छा होता है कि उसे माता-पिता दोनों का प्यार और स्नेह मिले”, लेकिन मौजूदा मामले में, बच्चा अपनी माँ के प्यार और स्नेह से वंचित रह गया। न्यायालय ने कहा कि इस स्तर पर उसकी अभिरक्षा मां को देना बच्चे के पालन-पोषण के हित में नहीं है, लेकिन उसने मां को बुलाने और मिलने का अधिकार दिया।
- UNION BUDGET 2024: KEY HIGHLIGHTS ON INCOME TAX
- E-Magazine on Tax Update Part-5 (June-2024) || Online Publication-13.07.2024
- CBI ARRESTED A GST INSPECTOR WHILE TAKING A BRIBE FROM THE COMPLAINANT
- 53वीं जीएसटी काउंसिल की बैठक के नए निर्णय से मिली व्यापारियों/ कारोबारियों को राहत |
- जीएसटी अपडेट(हिन्दी)पत्रिका || भाग -IV ( मई-जून 2024) Date of Pub.:- 28.06.2024